Saturday, July 21, 2012

"You can chain me, you can torture me, you can even destroy this body, but you will never imprison my mind"

PVCHR: "You can chain me, you can torture me, you can eve...: http://pvchr.asia/?id=85 National Consultation Report National Consultation on "Testimonial campaign contribute to eliminate impun...

Friday, July 20, 2012

उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद मे सार्वजनिक जमीन में स्थित शिव मन्दिर मे जलाभिषेक से रोके गये दलित और विरोध करने पर पुलिस ने की पिटाई के सन्दर्भ मे !



---------- Forwarded message ----------
From: Detention Watch <pvchr.adv@gmail.com>
Date: 2012/7/18
Subject: उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद मे सार्वजनिक जमीन में स्थित शिव मन्दिर मे जलाभिषेक से रोके गये दलित और विरोध करने पर पुलिस ने की पिटाई के सन्दर्भ मे !
To: cmup@nic.in, cmup@up.nic.in, csup@up.nic.in, yadavakhilesh@gmail.com
Cc: lenin@pvchr.asia, Lenin Raghuvanshi <pvchr.india@gmail.com>


                                                                                                                                                                     दिनांक - 18 जुलाई, 2012.
सेवा मे,
          श्रीमान मुख्यमंत्री जी, 
          उत्तर प्रदेश सरकार - लखनऊ !
 
विषय - उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद मे सार्वजनिक जमीन में स्थित शिव मन्दिर मे जलाभिषेक से रोके गये दलित और विरोध करने पर पुलिस ने की पिटाई के सन्दर्भ मे !
 
महोदय,
         हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चन्हुंगा, जहा सैयद्राज़ा थाना क्षेत्र के काजीपुर गांव में दलितों को शिव मंदिर में सोमवार को जाति सूचक शब्द इस्तेमाल कर जलाभिषेक से रोक दिया गया। यही नहीं निजी मंदिर बताकर धकियाते हुए उन्हें बाहर कर दिया गया।  मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकार कर लोगों को हटाने का प्रयास किया। इस दौरान पिटायी से बचने के लिए दो लोग कैलाश राम व शंकर राम नहर में कूद गये। नहर से निकालकर पुलिस ने उनकी जमकर पिटायी की और जीप में बैठाकर थाने भेज दिया।
      
        विदित हो की पिछले सोमवार को सभी जाति के लोगों ने यहां पूजा अर्चना की थी। लेकिन सोमवार को प्रात: 8 बजे से अनुसूचित जाति के लोगों को मना कर दिया गया और सार्वजनिक मंदिर में ताला लगाकर बाहर से पूजन अर्चन करने को कह दिया गया।  जबकि राजस्व विभाग की तरफ से लेखपाल शंकर ने मानचित्र देखकर बताया कि शिव मंदिर सार्वजनिक जमीन में स्थित है।
 
 
         अत: आपसे से निवेदन है की मामले मे त्वरित न्यायोचित कार्यवाही करते हुए दलितो के गरिमा और अस्मिता को सुनिश्चित कराने के साथ सम्भावित दोषियो एवम पुलिस कर्मियो पर दण्डात्मक कार्यवाही करने की कृपा करे !
 
 
भवदीय 
 
 
(डा0 लेनिन)  
महासचिव
मानवाधिकार जन निगरानी समिति,
पता - सा 4/2ए., दौलतपुर, वाराणसी - 221002.
उत्तर प्रदेश - भारत !
 
मो0 - +91-9935599333.
ई-मेल - lenin@pvchr.asia
 

विरोध करने पर पुलिस ने की पिटाई

शर्मनाक काजीपुर गांव में सार्वजनिक जमीन पर बना है मंदिर, निजी मंदिर बताते हुए दलितों के साथ की गई अभद्रता

सैयदराजा (एसएनबी)। स्थानीय थाना क्षेत्र के काजीपुर गांव में दलितों को शिव मंदिर में सोमवार को जाति सूचक शब्द इस्तेमाल कर जलाभिषेक से रोक दिया गया। यही नहीं निजी मंदिर बताकर धकियाते हुए उन्हें बाहर कर दिया गया। यह सूचना गांव में आग की तरह फैल गयी तो लोगों में जबरदस्त आक्रोश व्याप्त हो गया। मंदिर पर लोग इकठ्ठे हो गये और वाद-विवाद होने लगा। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकार कर लोगों को हटाने का प्रयास किया। इस दौरान पिटायी से बचने के लिए दो लोग नहर में कूद गये। नहर से निकालकर पुलिस ने उनकी जमकर पिटायी की और जीप में बैठाकर थाने भेज दिया। मामला बिगड़ता देख इसकी सूचना आला अधिकारियों को दी गयी।

 

सूचना पर एएसपी ऑपरेशन विजय भूषण, सीओ चकिया यशपाल सिंह, एसडीएम स्वामीनाथ पाठक, राजस्व निरीक्षक शिव शंकर पाठक, चन्दौली कोतवाल आरपी यादव मौके पर पहुंच गये। बताया जाता है कि श्रावण मास के द्वितीय सोमवार को जहां भक्तों ने शिवालयों व मंदिरों में जाकर जलाभिषेक कर मत्था टेका वहीं थाना क्षेत्र के काजीपुर गांव में 50 वर्ष पुराने शिव मंदिर को निजी मंदिर बताकर अनुसूचित जाति के लोगों को दर्शन पूजन करने से मना करने पर धर्म व आस्था के नाम पर बवाल हो गया और देखते ही देखते गांव में एक जाति विशेष के प्रति आक्रोश पैदा हो गया।

 

पिछले सोमवार को सभी जाति के लोगों ने यहां पूजा अर्चना की थी। लेकिन सोमवार को प्रात: 8 बजे से अनुसूचित जाति के लोगों को मना कर दिया गया और सार्वजनिक मंदिर में ताला लगाकर बाहर से पूजन अर्चन करने को कह दिया गया। मंदिर पर तैनात पुलिसकर्मियों ने व्याप्त तनाव से थानाध्यक्ष को अवगत कराया और फोर्स की मांग की। मौके पर पहुंची फोर्स ने लोगों को हटाने के लिए लाठियां फटकारनी शुरू कर दी। इससे डरकर कैलाश राम व शंकर राम पास ही स्थित नहर में कूद पड़े। लोगों का कहना है कि नहर से निकालकर उन दोनों की जमकर पिटाई की गई और हिरासत में थाने भिजवा दिया गया।

 

निजी मंदिर बताने वाली भोला यादव की पत्नी आशा देवी का कहना है कि पिछले वर्ष अक्टूबर माह में नवरात्र को रामफल की पत्नी सुधा ने मंदिर में मुग्रे की बलि दी थी, इसलिए मैंने उन्हें यहां पूजा अर्चना से मना किया। वहीं रामफल की पत्नी सुधा ने बताया कि मैंने अपने घर में शीतला मां की स्थापना की है और इसी की सफलता की कामना लेकर शिव मंदिर गयी थी। मुग्रे की बलि देने का आरोप सरासर गलत है। सूचना पाकर एएसपी ऑपरेशन विजय भूषण, सीओ चकिया यशपाल सिंह, एसडीएम स्वामीनाथ पाठक, राजस्व निरीक्षक शिव शंकर पाठक, चन्दौली कोतवाल आरपी यादव मौके पर पहुंच गये। वहां ग्रामीणों से बातचीत की और थाना बुलाकर मामले को सुलह समझौते के तहत मामले को हल कराया गया। राजस्व विभाग की तरफ से लेखपाल शंकर ने मानचित्र देखकर बताया कि शिव मंदिर सार्वजनिक जमीन में स्थित है। थाना प्रांगण में सुलह समझौते के तहत दोनों पक्षों को समझा बुझाकर मामले को रफा दफा कर दिया गया और मंदिर की सुरक्षा के लिए चार पुलिस कर्मियों को तैनात कर दिया गया। तनाव देखते हुए पीएसी भी बुला ली गई है।


 
 
 





 

उत्तर प्रदेश के सीतपुर जनपद मे खाकी वर्दी पहने डीएसपी ने अपने जूते से हटाया अज्ञात युवक के शव का कपडा व मृतक के लाश को भी पलट कर देखने की कोशिश के सम्बन्ध मे !



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From: Detention Watch <pvchr.adv@gmail.com>
Date: 2012/7/18
Subject: उत्तर प्रदेश के सीतपुर जनपद मे खाकी वर्दी पहने डीएसपी ने अपने जूते से हटाया अज्ञात युवक के शव का कपडा व मृतक के लाश को भी पलट कर देखने की कोशिश के सम्बन्ध मे !
To: Anil Kumar Parashar <jrlawnhrc@hub.nic.in>, akpnhrc@yahoo.com, covdnhrc@nic.in
Cc: lenin@pvchr.asia, Lenin Raghuvanshi <pvchr.india@gmail.com>



                                                                                                                                                                      दिनांक - 18 जुलाई, 2012.
सेवा मे,
          श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
          राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,
          नई दिल्ली - भारत !
 
विषय -  उत्तर प्रदेश के सीतपुर जनपद मे खाकी वर्दी पहने डीएसपी ने अपने जूते से हटाया अज्ञात युवक के शव का कपडा व मृतक के लाश को भी पलट कर देखने की कोशिश के सम्बन्ध मे !
 
महोदय,
         हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चन्हुंगा, जहा पुलिसिया असंवेदनशीलता के कारण मानवता शर्मसार हो गयी ! मामला यह है की सम्बन्धित जनपद के रेउसा इलाके के बसंतापुर गांव मे पैतीस वर्षीय एक अज्ञात युवक की लाश मिली, जिसके शरीर पर कई जगह धारदार हथियार से काटे जाने के निशान थे और कपडे कीचड. से सने थे ! वहा के ग्रामीणो ने इसकी सूचना पुलिस को दिये, जिस पर मौका - मुआयना करने डिप्टी एसपी अपने मातहत पुलिसकर्मियो के साथ पहुंचे ! 
 
        खाकी वर्दी मे मौजूद डीसपी जयप्रकाश सिह यादव ने दम तोड. चुके आदमी की शिनाख्त के लिए हाथ लगाने की भी जहमत नही उठाई और उपस्थित स्थानीय लोंगो की मौजूदगी मे जूते से ही मृतक के शरीर पर पडे. कपडे. को हटाये तथा लाश को पलट कर देखने की भी कोशिश की गयी !  इस पुलिसिया असंवेदनशीलता का गवाह एक बार फिर उत्तर प्रदेश बना !
 
        इस शर्मनाक वरदात को अंजाम देने वाले पुलिस कर्मी पूरे घटनाक्रम को ही झुठला रहे है, जबकि स्थानीय अखबार मे छपी फोटो अमानवीय हरकत व घिनौनी पडताल का साफ - साफ तस्वीर पेश कर रहा है, जिसे झुठलाया नही जा सकता !  
 
 
         अत: आपसे से निवेदन है की मामले मे त्वरित न्यायोचित कार्यवाही करते हुए मानव गरिमा और अस्मिता को सुनिश्चित कराने के लिए सम्भावित दोषी पुलिस कर्मी पर दण्डात्मक कार्यवाही करे व मृतक के हत्या मे उच्चस्तरीय जांच कराते हुए परिजनो को मुआवज़ा प्रदान कराने की कृपा करे !
 
 
भवदीय 
 
 
(डा0 लेनिन)  
महासचिव
मानवाधिकार जन निगरानी समिति,
पता - सा 4/2ए., दौलतपुर, वाराणसी - 221002.
उत्तर प्रदेश - भारत !
 
मो0 - +91-9935599333.
ई-मेल - lenin@pvchr.asia
 

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Ensure the right to life with dignity and respect for right to choice guaranteed under constitution of India.



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From: PVCHR ED <pvchr.india@gmail.com>
Date: Fri, Jul 20, 2012 at 12:53 PM
Subject: Ensure the right to life with dignity and respect for right to choice guaranteed under constitution of India.
To: US-C <covdnhrc@nic.in>, jrlawnhrc <jrlawnhrc@nic.in>, jrlawnhrc@hub.nic.in


To,

Honorable Chairperson,

NHRC,

New Delhi.


Dear Sir,

Greetings from PVCHR.

PVCHR is bringing the a case of right to life with dignity guaranteed under article 21 of constitution.

It may sound bizarre, but reflects a sorry state of affairs that can happen only in India! Some "living" people want justice, as they have been declared "dead" on paper — certified by government documents.

Santosh Singh is a "living" example who told Gulf News, "It took minutes for the government department in the state of Uttar Pradesh to issue a fake 'death certificate' at the behest of my relatives who usurped my property. But no amount of requests to the-powers-that-be has helped get me back the status of being 'alive'. Imagine, while I am living, I have to prove that I am alive!"

The villagers declared me an outcast and my relatives reported me 'missing'. Soon after, my cousins, who are politically well connected, prepared fake documents and declared me 'dead'. They have since grabbed my land and property

Resident of Chhitauni in Varanasi, Uttar Pradesh, Singh says, "I left my hometown and went to Mumbai, Maharashtra, in 2000 after meeting Bollywood actor Nana Patekar, who was shooting for his film Aanch in our village. He had offered me a job as cook."

Singh's problems started when he fell in love and married a Maharashtrian girl from a dalit (lower caste) family.

"My parents had passed away and my sisters were by then married. When I went back to my village, I had to face angry relatives, who threatened to teach me a lesson for marrying a dalit girl. They said I had brought shame upon the thakur (upper caste) family we belong to.

"The villagers declared me an outcast and my relatives reported me 'missing'. Soon after, my cousins, who are politically well connected, prepared fake documents and declared me 'dead'. They have since grabbed my land and property."

Singh's battle in the court to get back his identity and land bore no result, as the date of hearing kept being postponed for many years. "I had no money left to pay the lawyer and he ditched me," he says dejectedly.

Left with no choice, a few months back, Singh took his fight to Jantar Mantar in Delhi. He sits with a placard that reads, Mein zinda hoon (I am alive). Passers-by look at him quizzically. While some sympathise with him, others are unable to fathom his dilemma.

Remonstrating just a couple of kilometres away from where the high-and-mighty political leaders reside, he laments, "Except assurances, I have received nothing. Even the police sided with my cousins and beat me up mercilessly, due to which my left ear drum is permanently damaged."

Fed up of the struggle and finding that all channels have till now led to a dead end, Singh sobs bitterly and requests, "Please help me. Kindly publish my mobile number: 00971-8587870812 for any kind of assistance to reach me.

"My wife and five-year-old son are staying with my in-laws in Mumbai and want me to go back to them. But my only wish is to reclaim my ancestral property, which I wish to sell and start life afresh."

It is also clear case of violation of SC/ST Act.

 

Please instruct to Government of UP for appropriate action to ensure the right to life with dignity and respect for right to choice guaranteed under constitution of India.

 

With regards,

Lenin raghuvanshi

Member,NGO core group of NHRC

PVCHR

SA 4/2 A, Daulatpur,Varanasi-221002,India

Email:lenin@pvchr.asia

Mobile:+91-9935599333

 

Attachment:

http://gulfnews.com/news/world/india/dead-man-in-india-must-prove-he-is-alive-1.1048301

 

Dead man in India must prove he is alive

http://gulfnews.com/news/world/india/dead-man-in-india-must-prove-he-is-alive-1.1048301

July 20, 2012

Man's family prepared fake documents to declare him dead, and grabbed his property, he says

http://gulfnews.com/polopoly_fs/santosh-singh-1.1048482!image/1722607819.jpg_gen/derivatives/box_475/1722607819.jpg

New Delhi: It may sound bizarre, but reflects a sorry state of affairs that can happen only in India! Some "living" people want justice, as they have been declared "dead" on paper — certified by government documents.

Santosh Singh is a "living" example who told Gulf News, "It took minutes for the government department in the state of Uttar Pradesh to issue a fake 'death certificate' at the behest of my relatives who usurped my property. But no amount of requests to the-powers-that-be has helped get me back the status of being 'alive'. Imagine, while I am living, I have to prove that I am alive!"

The villagers declared me an outcast and my relatives reported me 'missing'. Soon after, my cousins, who are politically well connected, prepared fake documents and declared me 'dead'. They have since grabbed my land and property

Resident of Chhitauni in Varanasi, Uttar Pradesh, Singh says, "I left my hometown and went to Mumbai, Maharashtra, in 2000 after meeting Bollywood actor Nana Patekar, who was shooting for his film Aanch in our village. He had offered me a job as cook."

Singh's problems started when he fell in love and married a Maharashtrian girl from a dalit (lower caste) family.

"My parents had passed away and my sisters were by then married. When I went back to my village, I had to face angry relatives, who threatened to teach me a lesson for marrying a dalit girl. They said I had brought shame upon the thakur (upper caste) family we belong to.

"The villagers declared me an outcast and my relatives reported me 'missing'. Soon after, my cousins, who are politically well connected, prepared fake documents and declared me 'dead'. They have since grabbed my land and property."

Singh's battle in the court to get back his identity and land bore no result, as the date of hearing kept being postponed for many years. "I had no money left to pay the lawyer and he ditched me," he says dejectedly.

Left with no choice, a few months back, Singh took his fight to Jantar Mantar in Delhi. He sits with a placard that reads, Mein zinda hoon (I am alive). Passers-by look at him quizzically. While some sympathise with him, others are unable to fathom his dilemma.

Remonstrating just a couple of kilometres away from where the high-and-mighty political leaders reside, he laments, "Except assurances, I have received nothing. Even the police sided with my cousins and beat me up mercilessly, due to which my left ear drum is permanently damaged."

Fed up of the struggle and finding that all channels have till now led to a dead end, Singh sobs bitterly and requests, "Please help me. Kindly publish my mobile number: 00971-8587870812 for any kind of assistance to reach me.

"My wife and five-year-old son are staying with my in-laws in Mumbai and want me to go back to them. But my only wish is to reclaim my ancestral property, which I wish to sell and start life afresh."

Meanwhile, Singh is not an isolated case of people declared "dead" by greedy relatives to grab land in villages all over the country. The situation has become such that an association has been formed to fight for the rights of the "living dead".

Called Mritak Sangh (Association of the Dead), it was launched by a farmer Lal Bihari in Uttar Pradesh. He was in the process of applying for a loan when the bank representative told him that his papers had been rejected. Government records showed he was no longer among the living. And there was even a death certificate bearing his name.

Bihari learnt that it was not a case of any administrative blunder, but his unscrupulous relative had bribed an official to provide a false death certificate. During his fight for justice Bihari realised there were several hundred others suffering the same predicament.

The association formed by Bihari has decided to walk the streets of Azamgarh in Uttar Pradesh on July 30, to put pressure on the government to look into their misery.

But Singh claims, "No association, NGO or rights activists have come to anyone's help till now."

 


आक्सफोर्ड स्कूल में बच्चों के बाल काटे जाने और लगातार भेदभाव पूर्व व्यवहार किये जाने के सन्दर्भ में।







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From: PVCHR <pvchr@rediffmail.com>
Date: 2012/7/20
Subject: आक्सफोर्ड स्कूल में बच्चों के बाल काटे जाने और लगातार भेदभाव पूर्व व्यवहार किये जाने के सन्दर्भ में।
To: "ncpcr.india" <ncpcr.india@gmail.com>


20 जूलाई, 2012
सेवा में,
सुश्री शांता सिंहा
अध्यक्षा
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
नई दिल्‍ली।

विषय : आक्सफोर्ड स्कूल में बच्चों के बाल काटे जाने और लगातार भेदभाव पूर्व व्यवहार किये जाने के सन्दर्भ में।

महोदया,
      आक्सफोर्ड स्कूल में शिक्षा अधिकार कानून के तहत 25 प्रतिशत गरीब नामांकित बच्चों के बाल काटे जाने और लगातार भेदभाव पूर्ण व्यवहार करने की घटना प्रकाश में आयी हैं। घटना के सन्दर्भ में दलित साम्राज्य स्थापना समिति के अध्यक्ष श्री डी नारायण द्वारा शिकायत भी दर्ज कराई गयी हैं जिस पर जांच भी चल रही हैं।
किन्तु जांच प्रकिया में संशय का विचार इस आधार पर आ रहा हैं कि कर्नाटक राज्य और उसकी राजधानी बैंगलोर के करीब (1000) एक हजार स्कूल 25 प्रतिशत गरीब बच्चों के नामांकन के आरक्षण के विरोध में हडताल पर हैं। प्राइवेट स्कूलों में आर0टी0ई0 के तहतद् इस कानून के अंर्तगत नामांकित बच्चों के साथ बडे पैमाने पर भेदभाव और उन्हे बाकी बच्चें से अलग साबित करने का अमानवीय प्रयास किया जा रहा हैं। जिससे बच्चों की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुँती हैं।
इस प्रकरण में माननीय राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सम्मानित सदस्यो के द्वारा स्वंय बच्चों और उनके परिवार से मिलकर वास्तविक स्थिति से अवगत होते हुये न्यायोचित कार्यवाही की जानी चाहिए।
साथ ही कर्नाटक राज्य स्तर पर प्राइवेट स्कूलो के साथ संवाद स्थापित किया जाना चाहिए कि भविष्‍य में उनके स्कूलों में बच्चों की गरिमा/इज्जत को ठेस पहुँचाने वाली कोई कार्यवाही नही की जायेगी।

संलग्‍नक :-


भवदीया

श्रुति नागवंशी
मैनेजिंग ट्रस्टी



PEOPLES VIGILANCE COMMITTEE ON HUMAN RIGHTS (PVCHR)
SA4/2 DAULATPUR,VARANASI(UP)-221002,INDIA..
Phone: 91-542-25866688 .
Mobile:9935599330

Tuesday, July 17, 2012

बेसिक शिक्षा मंत्री का बाल अधिकार के विरुध्द बयान के सन्दर्भ मे



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From: PVCHR <pvchr@rediffmail.com>
Date: 2012/7/17
Subject: बेसिक शिक्षा मंत्री का बाल अधिकार के विरुध्द बयान के सन्दर्भ मे
To: cmup <cmup@up.nic.in>


17 जुलाई 2012

सेवा मे,

        माननीय मुख्यमंत्री महोदय,

        उत्तर प्रदेश    

विषय –माननीय बेसिक शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश श्री रामगोविन्द जी द्वारा विद्यालय मे बच्चो की पिटाई किये जाने के पक्ष  मे वक्तव्य दिये जाने के सन्दर्भ मे ।

महोदय,

        बेसिक शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश माननीय श्री रामगोविन्द जी द्वारा लखनऊ मे आयोजित एक कार्यक्रम मे अपने भाषण मे विद्यालयो मे पठन पाठन मे बच्चो की पिटाई न किये जाने की निति की आलोचना की गयी 

उत्तर प्रदेश के माननीय शिक्षा मंत्री महोदय का यह वक्तव्य अत्यंत ही आपत्तिजनक, मानवता विरोधी एव बाल अधिकार विरोधी है । इस वक्तव्य से स्पष्ट है कि RTE  कानून मे उनकी आस्था और विश्वास नही है, जबकि शिक्षा अधिकार अधिनियम शिक्षाविदो, विधि विशेषज्ञो और बाल मनोविज्ञान के अध्ययनो को ध्यान मे रखते हुये  बच्चो के चौमुखी विकास एव बाल अधिकार  संरक्षण  के उद्देश्य से सघन विचार विमर्श के बाद बनायी गयी है ।

इस प्रकरण से स्पष्ट है कि माननीय शिक्षा मंत्री महोदय बाल मनोविज्ञान एव बालहितो के प्रति अनभिज्ञ है । यही  कारण है कि वे पुरानी पद्द्ति को आज भी उपयोगी मान रहे है । जबकि न केवल भारत बल्कि विश्व स्तर पर बच्चो की शिक्षा पद्द्ति पर किये गये अध्ययनो मे यह निष्कर्ष आया कि दण्ड और यातना से बच्चो के मन मष्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड्ता है ।

        इस प्रकरण को आप महोदय के संज्ञान मे लाते हुए यह सुझाव देना चाहती हू कि देश के सभी शिक्षा मंत्रियो के लिये सरकार द्वारा  "बच्चो के लिये दण्ड उचित या अनुचित विषयक संगोष्ठी" आयोजित किया जाये जिसमे बच्चो पर दंड का प्रभाव एव परिणाम और बाल हितैषी गुणवत्तपुर्ण शिक्षा पद्दति स्पस्ट राय बनाई जा सके ।                      

 

 

 

भवदीया                                                 

श्रुति नागवंशी          मैनेजिंग ट्रस्टी

मानवाधिकार जननिगरानी समिति






PEOPLES VIGILANCE COMMITTEE ON HUMAN RIGHTS(PVCHR)
SA4/2 DAULATPUR,VARANASI(UP)-221002,INDIA..
Phone: 91-542-25866688 .
Mobile:9935599330
www.pvchr.asia


Sunday, July 15, 2012

The prevention of torture law is a much-needed step to embellish India’s credentials as country with a sound criminal justice system

PVCHR: The prevention of torture law is a much-needed ste...: http://www.mynews.in/News/the_prevention_of_torture_law_is_a_much_needed_step_to_embellish_indias_credentials_as_country_with_a_sound_cri...

PVCHR: The prevention of torture law is a much-needed ste...

PVCHR: The prevention of torture law is a much-needed ste...: http://www.mynews.in/News/the_prevention_of_torture_law_is_a_much_needed_step_to_embellish_indias_credentials_as_country_with_a_sound_cri...

Musahar: a life of torture by state with support of muscle power of Cast...

Tuesday, July 10, 2012

Equality for Dalits: Does it exist? - Kashmir Times

Equality for Dalits: Does it exist? - Kashmir Times


Equality for Dalits: Does it exist?
Reviewed By Mushtaq Ul Haq Ahmad Sikander
Book Review
Justice, Liberty, Equality: Dalits in Independent India
Author: Lenin Raghuvanshi
Publisher: Frontpage Publications, London, U.K
Year of Publication: 2012
Price: Not Mentioned Pages: 135
ISBN: 9789381043042
Dalits in India have been suffering since time immemorial in India. Hinduism which believed in Varna system of caste coupled with the Aryan supremacy structured the prejudice, bias and exploitation against dalits. It was deemed to be God ordained commandment on the higher castes to demean, exploit and kill them with impunity. They were destined by God to suffer immortally, thus placed outside the Varna system. The upper castes by trampling their rights and perpetuating atrocities against them were fulfilling the God’s plan. This situation should have changed after the Independence of India in 1947. Indian State adopted secularism and democracy as its foundational pillars of constitution which guaranteed equal rights to all irrespective of religion, caste, color, class, gender, region and community. These constitutional guarantees and rights should have been translated into action, but alas this is not the case.
The present book under review by the versatile activist Lenin Raghuvanshi is a testimonial documentation of atrocities, exploitation and abuse of rights of Dalits in “free India’. In the Introduction of the book, Lenin depicts the police violence against Dalits, Scheduled Tribes, Scheduled Castes, Crimes against their women and how the culture of impunity shields the guilty. This culture of impunity against the criminals is the biggest threat to the rule of law in India. Lenin woefully states about the Dalit women as, “Dalits are considered untouchables in Indian society yet rape of Dalit women is not considered a taboo by the upper castes. In fact, the latter uses rape as an instrument of continuous subjugation. Dalit women bear a triple burden: discrimination and exploitation based on caste, class and gender. Women are also victims of violence by security forces and armed opposition groups, traditional justice delivery system like ‘caste panchayat’ (illegal body of caste based system in villages) and cruel cultural practices like sati, honor killing and witch hunts. Discriminatory attitudes and lack of sensitization to the dynamics of crimes involving sexual or domestic violence leave victims without critical police aid or redress to which they are entitled”.
Talking about the state of impunity enjoyed by police and security forces Lenin states “In fact, almost every section of the Criminal Procedure Code (CrPc), 1973 provides some kind of impunity. For example, section 46 empowers the police to shoot to kill any accused charged with a crime punishable by death if that accused person attempts to escape from police custody. The police forces of Andhra Pradesh and Uttar Pradesh have made extensive use of this section to cover up fake encounters, killing hundreds of hapless detainees”.
Lenin then goes on to describe south of every village as South Africa because it contains Dalits against whom invisible apartheid is still prevalent. The discrimination against Dalits is both intrinsic and external. The Dalits are illiterate hence they are not aware of their constitutional rights; hence fail to alleviate their status. Rest the caste system is embedded in the Indian society and it manifests itself in various forms. The state of impunity is reinforced by the caste considerations as police fails to bring the culprits of crimes against dalits to book either due to caste bias, influence or lure of money. Dalits many times are collectively punished by the upper castes for the crime or mistake of a single Dalit. These examples bring fore the sad fact that spread of literacy hasn’t helped people grow more empathic towards dalits. Also it unveils a gory reality that Indian State has failed to inculcate spirit and virtues of equality and harmony among its institutions.
Lenin then moves on to document the plight of Musahar community and their day to day woes. He laments at the post active attitude of the administration in curbing the starvation deaths in this community. The land that is allotted to the Dalits is taken away by upper caste people, and the upper caste Hindu money lenders keep them under perpetual bondage. In this age too there exist bonded laborers in the community. Lenin has worked for Musahars despite impediments by releasing many bonded laborers and establishing a community school, as previously most children were drop outs. He holds the public distribution system responsible for the starvation deaths, as it is corrupt. The medical facilities are lacking which add to the mortality rate. The police still operate on the colonial structure with a communal mindset. Lenin is of the firm opinion that Indian police learnt demoralization and community punishment from the practice of caste system. He then relates many stories of police torture victims. The role of police in fake encounters is also well known, and how they operate in communal riots reinforcing victimization of the minorities.
The police torture is widespread in India, and “The biggest problem in combating the State on the issues of torture in India has been the non availability of verifiable data” (P-48). In many cases false medical reports of torture victims are produced in league with medical doctors and sometimes reports are concocted by Police themselves. Lenin is aware of the Legal flaws, “The judiciary is hampered by lack of specific legislation to address cases of torture and human rights violations by the security forces as well due to delayed judicial processes. All these leave the poor victim lonelier, shattered and completely disintegrated, irrespective of economic status” (P-49). Lenin wants and desires, “India is yet to adopt any legislation recognizing the right to compensation for human rights violations. The government continues to maintain its reservation to Article 9 of the International Covenant on Civil and Political Rights which states that under the Indian legal system there is no enforceable right to compensation for persons claiming to be victims of unlawful arrest or detention against the State. The courts and National Human Rights institutions, however, have awarded compensation for human rights violations, including torture”. (P-49).
The chapter on Testimonial Therapy is the jewel of the book. It gives hope to the victims of torture to overcome the psychological trauma in post torture phase. But only a few pages are dedicated to explain the testimonial therapy. Lenin abruptly moves to the Shrinking Livelihood in India. He quotes as case studies, the decline in the production of world famous Benaras Silk, as a result of the rival Chinese silk. Lenin relates the diseases associated with the handlooms and the Tuberculosis being rampant among the handloom workers and weavers. Then he again states about the severe malnutrition in Uttar Pradesh, though it is not Somalia. Lenin continues with the child starvation deaths this time in Ghasias community, who are also victim of government apathy.
The last two chapters deal with Rule of Lords, Political Patronage & how caste, patriarchy and corruption help in perpetuation of the same. Lenin relates violence against women, in the form of infanticide, honor killings, domestic violence, child marriages, infant and maternal mortality rates. If certain women make it to the panchayats still their husbands control the affairs.
Lenin then goes on to track the record of victims of fake encounters, extra and custodial killings by the Police since 1960s, which rose to epidemic proportions in early 1990s when innocents were being targeted as Maoists, Sikh militants or Islamic Jihadi extremists. The incompetence of National Human Rights Commission to protect human rights of innocents has rendered it as a toothless tiger. The State also acts softly on Hindutva fascist cadres. To add insult to injury criminalization of politics is ruling roost.
Overall the book is a welcome read and must for everyone who wants to be aware of the underbelly of Indian State. But the scheme of chapters and selection of case studies at times betray the title of the book, the scope of the book is much wider than its title conveys. It covers a lot of ground, but thematically it appears to be jumbled in a hurry. Despite its flaws Lenin needs to be congratulated for his endeavor. This book is a testimony to the fact that there are serious problems and grave issues with the project of ‘Shining India’.
(The author is Writer-Activist based in Srinagar, Kashmir and can be reached at sikandarmushtaq@gmail.com)

Thursday, July 5, 2012