To, 11 July, 2017
The Chairperson
National Human Rights Commission,
New Delhi.
Respected Sir,
I want to bring your kind attention towards the online news published in the Mediavigil "www.mediavigil.com" on 8 July, 2017 regarding " BHU पत्रकारिता विभाग में दलित शिक्षिका का उत्पीड़न, हिंदी के प्रोफेसर कुमार पंकज पर संगीन FIR " (Newspaper link annexed).
Therefore it is kind request please take appropriate and immediate action in this matter.
Thanking You,
Sincerely Yours,
Dr. Lenin Raghuvanshi
CEO
Peoples' Vigilance Committee on Human Rights
SA 4/2 A Daulatpur, Varanasi
मीडियाविजिल संवाददाता
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एक बार फिर गलत
कारणों से सुर्खियों में है। बीएचयू के कला संकाय के डीन, पत्रकारिता
विभाग के प्रभारी और हिंदी के वरिष्ठ अध्यापक डॉ. कुमार पंकज के खिलाफ़
शनिवार की दोपहर बनारस के लंका थाने में एक एफआइआर दर्ज हुई है। एफआइआर पत्रकारिता
विभाग की रीडर डॉ. शोभना नर्लिकर ने करवायी है जो बीते 15 साल से यहां पढ़ा रही
हैं। मामला आइपीसी की धारा 504, 506 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति
(नृशंसता निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(डी) के तहत दर्ज किया गया है।
डॉ. नर्लिकर का आरोप है कि डॉ. कुमार पंकज ने उनके साथ अपशब्दों का इस्तेमाल
किया है, जातिसूचक गालियां दी हैं और जान से मारने की धमकी
दी है।
एफआइआर में जो विवरण दर्ज है, उसके मुताबिक घटना बीते 6 जुलाई की है जब कला संकाय के डीन कुमार पंकज ने नर्लिकर के साथ यह अभद्रता की। नर्लिकर ने बताया कि उन्होंने इसकी शिकायत चीफ प्रॉक्टर से लिखित तौर पर की थी जिस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उसके बाद वे लंका थाना गईं जहां उनकी एफआइआर दर्ज करने से पुलिस ने मना कर दिया। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस पर दबाव डालकर मामला दर्ज करने से रोक दिया था। तीन दिन तक भटकने के बाद किसी तरह डॉ. शोभना ने वाराणसी के एसएसपी को फोन पर अपनी व्यथा सुनाई जिसके बाद एसएसपी के आदेश से शनिवार की दोपहर मुकदमा दर्ज हो सका।
Dr. Kumar Pankaj
एफआइआर के मुताबिक 6 जुलाई को डॉ. शोभना को कला
संकाय प्रमुख ने दोपहर 2 बजे अपने कक्ष में बुलाया और उनसे कहा कि ”विगत 14
वर्षों से विभाग का माहौल तुमने गंदा कर रखा है।” डॉ. शोभना ने जब ”हाथ
जोड़कर” उनसे कहा कि उनके मुंह से ऐसे शब्द ठीक नहीं लगते, तो डॉ.
कुमार पंकज ने ”जातिसूचक शब्द का प्रयोग करते हुए भद्दी-भद्दी
गालियां दी” और ”कहा कि औकात में रहो नहीं तो जान से मरवा
दूंगा”।
एफआइआर में तीन अन्य अध्यापकों के नाम दर्ज हैं
जो इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे- डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्र, स्वर्ण
सुमन और अमिता। इन तीनों ने संकाय प्रमुा के इस व्यवहार पर आपत्ति जतायी थी। डॉ.
शोभना ने पुलिस से सुरक्षा की मांग भी की है क्योंकि उन्हें डर है कि उनके साथ
कोई हादसा न हो जाए। बता दें कि डॉ. शोभना पत्रकारिता शिक्षण में आने से पहले पांच
वर्ष तक लोकमत समाचार और आइबीएन में बतौर पत्रकार काम कर चुकी हैं।
मीडियाविजिल से फोन पर विशेष बातचीत में उन्होंने
बताया कि उनके साथ दलित होने के नाते बहुत लंबे समय से दुर्व्यवहार और उत्पीड़न
चल रहा है। उन्होंने बताया कि बीती 23 मई से लगातार डॉ. कुमार पंकज उनकी हाजिरी
नहीं लगा रहे थे और रिकॉर्ड में अनुपस्थित दर्शा रहे थे। 6 जुलाई को अपने कक्ष में
बुलाकर उन्होंने पहले डॉ. शोभना की अनुपस्थिति की बात उठायी जबकि 23 मई को खुद
पंकज ने ही उनकी परीक्षा ड्यूटी लगाई थी। वे कहती हैं कि उन्होंने दिन भर ड्यूटी
की थी, सेमेस्टर परीक्षाओं में भी मौजूद रही थीं। डॉ. शोभना ने अपनी ड्यूटी
के साक्ष्य जैसे ही कुमार पंकज को दिखाए, वे भड़क गए और
गाली-गलौज करने लगे।
वे कहती हैं, ”जाति के आधार पर
गंदी-गंदी गालियां देते रहे।” डॉ. पंकज की रिटायरमेंट को छह माह बचे हैं और
बीते दो साल से पत्रकारिता विभाग के भी प्रमुख हैं। वे कहती हैं, ”वे मेरी
उपस्थिति का साक्ष्य देखकर चिढ़ गए। बोले, तुम्हें तो मार ही
डालूंगा, जिंदा नहीं रहने दूंगा।” वे
बताती हैं दलित होने के कारण उनका प्रमोशन रोक दिया गया है वरना वे इस वक्त
पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष होतीं। 2011 में ही वे रीडर बन गई थीं और 2014 में
उनका प्रमोशन लंबित था जिसे रोक दिया गया। वे आरोप लगाती हैं कि इस सारे उत्पीड़न
के पीछे मेरी जाति का ही आधार है।
डॉ. शोभना ने बताया, "मैं निखिल वागले और राजदीप सरदेसाई के साथ काम कर चुकी हूं। गोल्ड मेडलिस्ट हूं। महाराष्ट्र में मीडिया विशेषज्ञ के रूप में लोग जानते हैं। मेरी क्या गलती है सिवाय इसके कि मैं दलित जाति से आती हूं।" उन्होंने 6 जुलाई की घटना के बारे में बताया, "साले हरामखोर महाराष्ट्र के निचली जाति के दलित साले चमारन आ रहे… औकात में रहो, बोले, वरना तुमको मार डालूंगा। सबके सामने बोले… मुझे सौ बार बोला उन्होंने तुम्हारी औकात ही नहीं है प्रोफेसर की… चार साले झाड़ू लगाओगे।" डॉ. शोभना ने बताया कि जब चीफ प्रॉक्टर को शिकायत करने के बाद कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो उन्होंने कुलपति जीसी त्रिपाठी से मिलने की कोशिश की लेकिन वे शहर से बाहर हैं।
डॉ. कुमार पंकज से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। थोड़ी देर बाद डॉ. पंकज का फोन खुद आया और उन्होंने बताया कि ऐसी कोई एफआइआर नहीं हुई है। डॉ. पंकज ने कहा, "एफआइआर कराने के लिए आपको फिजि़कली जाना पड़ता है न… कोई एफआइआर नहीं हुई है… उन्होंने तहरीर दी होगी।" जब उन्हें बताया गया कि मीडियाविजिल के पास एफआइआर की प्रति है, तो वे साफ़ मुकर गए और बोले, "अगर एफआइआर हुई होती तो चीफ प्रॉक्टर ने मुझे जानकारी दी होती।"
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