Monday, February 19, 2018

यूपी: एनकाउंटर में मुस्लिम और दलित होते हैं निशाने पर?

---------- Forwarded message ----------
From: PVCHR Communication <cfr.pvchr@gmail.com>
Date: 2018-02-20 12:19 GMT+05:30
Subject: यूपी: एनकाउंटर में मुस्लिम और दलित होते हैं निशाने पर?
To: cr.nhrc@nic.in, covdnhrc <covdnhrc@nic.in>, NHRC <ionhrc@nic.in>
Cc: lenin <lenin@pvchr.asia>



To,                                                              
The Chairperson,
National Human Rights Commission
New Delhi.

Dear Sir, 
I want to bring in your kind attention towards the news published in BB Hindi on 17th February, 2018 regarding यूपी: एनकाउंटर में मुस्लिम और दलित होते हैं निशाने पर? http://www.bbc.com/hindi/india-43089138

Therefore it is kind request 

1.          To conduct an inquiry in this incident under section 176(1)A Cr.PC by a Judicial Magistrate
2.         To provide compensation to the victim's family.
3.          To ensure Videography of the Post-Mortem Report of the victim& the same is informed to NHRC.

Thanking You


Sincerely Yours
Lenin Raghuvanshi
Founder and CEO
Peoples' Vigilance Committee on Human Rights

यूपी: एनकाउंटर में मुस्लिम और दलित होते हैं निशाने पर?

  • 17 फरवरी 2018
एनकाउंटरइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
Image captionमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना 1200 मुठभेड़ में मारे गए 40 अपराधी
10 महीनों में 1100 से अधिक पुलिस एनकाउंटर और उनमें 35 से अधिक कथित अपराधियों की मौत. यह आंकड़ा किसी फ़िल्मी कहानी सा लगता है मगर है एकदम सच.
आबादी के लिहाज़ से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में इस समय एनकाउंटर का बोलबाला है और हाल में विधान परिषद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसका श्रेय भी लिया. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था कि राज्य में अपराध पर नियंत्रण के लिए पुलिस एनकाउंटर नहीं रुकेंगे.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, मुख्यमंत्री का कहना है कि 1200 एनकाउंटर में 40 ख़तरनाक अपराधी मारे गए हैं.
दूसरी तरफ़, एनकाउंटर को लेकर विपक्ष भी सत्तारुढ़ बीजेपी पर हावी है. समाजवादी पार्टी का कहना है कि योगी सरकार हर मोर्चे पर नाकाम रही है और अपनी कमियों को छिपाने के लिए एनकाउंटर का सहारा ले रही है.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बीबीसी से कहा कि उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ नेता संविधान को ताक पर रखकर काम कर रहे हैं और राज्य के 22 करोड़ लोग सरकार के निशाने पर हैं.
Image captionसमाजवादी पार्टी का आरोप है कि एनकाउंटर में अल्पसंख्यकों को बनाया जा रहा निशाना
वह कहते हैं, "किसान आत्महत्या कर रहा है, नौजवानों के पास नौकरी नहीं है. न्याय मांगने राजधानी लखनऊ आ रहे लोगों पर लाठीचार्ज हो रहा है."
मथुरा में 18 जनवरी को एक बच्चे की गोली लगने से मौत हुई थी तो वहीं 15 सितंबर को नोएडा में हुई एक कथित मुठभेड़ में भी एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को गोली लगी थी. इसके बाद राज्य सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि उसके एनकाउंटर में आम लोगों के अलावा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है.
इस पर राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि एनकाउंटर में निर्दोष लोगों की हत्या हो रही है और साथ ही बदले की भावना से काम हो रहा है.
वह कहते हैं, "चिन्हित करके लोगों के साथ अन्याय हो रहा है और उन्हें दंडित किया जा रहा है. पिछड़ी जाति, दलितों, अल्पसंख्यकों और किसानों को निशाना बनाया जा रहा है. इसके लिए सीबीआई जांच होनी चाहिए."
इन आरोपों पर बीजेपी ने भी विपक्ष पर पलटवार किया है. मुख्यमंत्री योगी ने ख़ुद विधान परिषद में कहा था कि अपराधियों के प्रति सहानुभूति दिखाना दुर्भाग्यपूर्ण है और यह लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है.
Image captionमुख्यमंत्री योगी का कहना एनकाउंटर जारी रहेंगे
बीबीसी से बातचीत में बीजेपी यूपी के मीडिया प्रभारी हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने कहा, "अखिलेश यादव की सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश में अराजकता का माहौल रहा. सड़कों पर नंगी तलवारें लेकर जुलूस निकाला जाता था. दबंग लोग ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रहे थे और सपा सरकार के मुख्यमंत्री दफ़्तर में बैठे थे."
पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने के विपक्ष के आरोप पर हरिश्चंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि यह सपा की जात-पात की राजनीति है और ऐसे आरोप मिथ्या, तर्कहीन और आधारहीन हैं.
मथुरा में कथित एनकाउंटर के दौरान एक बच्चे की जान जाने पर श्रीवास्तव सफ़ाई देते हुए कहते हैं कि वहां पर तीन पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया और उन पर एफ़आईआर दर्ज की गई.
Image captionएनकाउंटर को बढ़ते अपराध पर अंकुश लगाने के तौर पर देखा जाता है

एनकाउंटर में ख़ास लोग होते हैं निशाने पर?

क्या पुलिस एनकाउंटर राजनीतिक रूप से प्रायोजित होते हैं और उसमें किसी ख़ास तरीके के लोगों को निशाना बनाया जाता है? इस सवाल पर रिटायर्ड आईपीएस अफ़सर और उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व आईजी एस.आर. दारापुरी बीबीसी से कहते हैं कि पुलिस एनकाउंटर अधिकतर राज्य प्रायोजित होते हैं और 90 फ़ीसदी एनकाउंटर फ़र्ज़ी होते हैं.
वह कहते हैं, "जब राजनीतिक रूप से प्रायोजित एनकाउंटर होते हैं तो उनमें उस तबके के लोग होते हैं जो सत्ताधारी दल के लिए किसी काम के नहीं हैं या जिन्हें वो दबाना चाहते हैं. उत्तर प्रदेश में सरकार को यहां आंकड़ा जारी करना चाहिए कि एनकाउंटर में मारे गए लोग किस समुदाय के थे और जिन लोगों के सिर्फ़ पैर में गोली मारकर छोड़ दी गई है, वे किस समुदाय के थे."
"मेरी जानकारी के अनुसार एनकाउंटर में जितने लोग मारे गए हैं, उनमें अधिकतर संख्या मुसलमानों, अति पिछड़ों और दलितों की है, सवर्णों में शायद ही कोई हो. पीड़ित परिवारों से मिलकर आए एक पत्रकार ने दावा किया कि एनकाउंटर में मुस्लिमों को मारा गया है और कुछ के पैरों में गोली मारकर छोड़ दी गई है, जिन्हें इलाज भी नहीं दिया जा रहा है. इसके अलावा दलित और पिछड़ी जातियों के लोग हैं."
एनकाउंटर को बढ़ते अपराध पर अंकुश लगाने के हथियार के तौर पर भी देखा जाता है. उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने बीबीसी से कहा कि अपराधी जब निरंकुश हो जाएं तो ऐसे कदम उठाना आवश्यक हो जाता है और जब पुलिस पर ही हमला होने लगे तो गोली का जवाब गोली से ही देना पड़ता है.
वह कहते हैं, "अपराध को समाप्त करने के लिए बहुत से काम करने होते हैं. यूपी में हुए हज़ार एनकाउंटर में अगर 30 से 35 अपराधी मरे हैं तो कोई बड़ा आंकड़ा नहीं है. यह कहना ग़लत होगा कि सारे एनकाउंटर फ़र्ज़ी थे."
उत्तर प्रदेश में बढ़ता अपराध हर चुनाव में बड़ा मुद्दा होता है. देश की सबसे अधिक जनसंख्या इस राज्य में होने के नाते यहां अपराध का स्तर भी अधिक है. इस पर प्रकाश सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में अपराध काफ़ी बढ़ गया था.
वह एक क़िस्से का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि काफ़ी पहले एक तस्वीर खींची गई थी जिसमें एक माफ़िया सरगना, जिसे जेल में होना चाहिए था, वो सदन में घूम रहा था और एक वीआईपी मंत्री से मिलकर जा रहा था.

अपराधियों के मानवाधिकार होते हैं?

हमेशा मुठभेड़ के दौरान मानवाधिकारों का प्रश्न भी उठता रहा है. उत्तर प्रदेश में हुए एनकाउंटर के बाद मानवाधिकार आयोग ने यूपी सरकार से इस पर जवाब मांगा है.
मानवाधिकार के सवाल पर प्रकाश सिंह कहते हैं, "बढ़ते अपराध पर काबू पाने के लिए सख़्त कदम उठाना ज़रूरी था. मानवाधिकार का अधिकार सही वातावरण में लागू होता है लेकिन जब एक अपराधी गोली चला रहा है तो उसका मानवाधिकार समाप्त हो जाता है. मानवाधिकार का अर्थ यह नहीं है कि बदमाश गोली चलाए और पुलिसकर्मी अपना सीना आगे करके कहे कि हां, गोली चला दो, हम मरने के लिए यहां खड़े हुए हैं."
वह अपराधियों के लिए मानवाधिकार के मायने विस्तार से बताते हैं. उनका कहना है कि अपराधी जब गिरफ़्तार हो जाए तो उसे प्रताड़ित न किया जाए, जब वह निहत्था हो तब उस पर हमला न किया जाए. यह मानवाधिकारों की श्रेणी में माने जा सकते हैं.
आत्मरक्षा में गोली चलाने की बात पर एस.आर. दारापुरी भी सहमति जताते हैं लेकिन वह कहते हैं कि जब एनकाउंटर ही फ़र्ज़ी हो तब क्या किया जा सकता है.
Image captionउत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह लखनऊ में एटीएस हेडक्वॉर्टर में
वह कहते हैं, "मैं पुलिस विभाग में रहा हूं और 90 फ़ीसदी से अधिक एनकाउंटर को फ़र्ज़ी मानता हूं. मेरा मानना है कि असली एनकाउंटर दुर्लभ ही होते हैं. बाकी सारे एनकाउंटर व्यवस्थित या राज्य द्वारा प्रायोजित होते हैं."
तो क्या एनकाउंटर के द्वारा अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है? इस सवाल पर प्रकाश सिंह और दारापुरी सहमति नहीं जताते, उनका मानना है कि इसके लिए पुलिस सुधारों की आवश्यकता है.
दारापुरी कहते हैं, "पुलिस की अपनी दिक्कतें हैं. पुलिसकर्मियों की संख्या कम है और उनको ऊपर से वीआईपी सुरक्षा, परीक्षा ड्यूटी में लगा रखा है. असली पुलिसिंग का काम तो हो नहीं रहा है, जिसके नतीजे में अपराध को रोकना मुश्किल हो जाता है."
भारत में एनकाउंटर का इतिहास काफ़ी पुराना रहा है. सोहराबुद्दीन शेख, इशरत जहां, हाशिमपुरा एनकाउंटर काफ़ी चर्चित रहे और इनका मामला न्यायालय तक भी पहुंचा.
अब देखना यह है कि उत्तर प्रदेश में हाल में हुए एनकाउंटर पर कितनी सरगर्मियां तेज़ होंगी और ये आगे भी जारी रहेंगे या नहीं.

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