सेवा में,
श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,
नई दिल्ली |
विषय : गुजरात के सूरत जिले के डिंडोली गांव के आदर्श प्राथमिक विद्यालय में बच्चो से जबरदस्ती शौचालय साफ़ कराये जाने पर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के सन्दर्भ में |
महोदय,
आपका ध्यान दैनिक भाष्कर डाट काम में छपी खबर "सूरत: सफाई कर्मचारी के न होने की सजा मिल रही है बच्चों को" की ओर दिलाना चाहता हूँ | सूरत जिले के डिंडोली गांव के आदर्श प्राथमिक विद्यालय कक्षा 1 से 5वीं तक के इस सरकारी स्कूल में कर्मचारी न होने की वजह से स्कूल के बच्चों से ही पूरी सफाई करवाई जाती है। अगर बच्चे सफाई के लिए मना कर दें तो उन्हें सख्त सजा भी दी जाती है । सफाई के लिए सभी बच्चों के दिन तय हैं । इसमें क्लास में झाड़ू लगाने से लेकर शौचालय तक की सफाई करना शामिल है । शौचालय की सफाई के दौरान बच्चों की ड्रेस भी गंदी हो जाती है और उन्हें स्कूल में उसी हालत में बैठना पड़ता है । कई बार बच्चे शौचालय में फिसलकर गिर भी जाते हैं, लेकिन उनकी लाचारी यह है कि वे स्कूल छोड़ भी नहीं सकते, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। यह बात बच्चों के परिजन को भी पता है, लेकिन वे भी मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें बच्चों को शिक्षित जो करना है। डिंडोली बस स्टैंड के पास स्थित इस स्कूल का संचालन जिला पंचायत करती है । स्कूल में लगभग 700 बच्चे पढ़ते हैं। यहां हाल ही में स्कूल की नई बिल्डिंग बनी है, लेकिन स्कूल में सफाई कर्मचारी नहीं है।
अतः आपसे अनुरोध है की कृपया इस मामले को संज्ञान में लेते हुए दोषी लोगो के खिलाफ न्यायोचित कार्यवाही की जाय और बालाधिकार संरक्षण किया जाय |
संलग्नक :
1. दैनिक भास्कर डाट काम में छपी खबर की प्रति का लिंक http://www.bhaskar.com/news/GUJ-SUR-students-cleans-toilet-in-school-4819045-PHO.html
2. दैनिक भास्कर डाट काम में छपी खबर की प्रति |
भवदीया
श्रुति नागवंशी
मैनेजिंग ट्रस्टी
मानवाधिकार जननिगरानी समिति
सा 4/2 ए दौलतपुर, वाराणसी
+91-9935599330/1
सूरत: सफाई कर्मचारी के न होने की सजा मिल रही है बच्चों को
Dhirendra Patil|Nov 25, 2014, 14:24PM IST
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(फोटो: शौचालय साफ करते हुए बच्चे)
सूरत। तस्वीर में दिखाई दे रहा यह नजारा सूरत जिले के डिंडोली गांव के आदर्श प्राथमिक शाला का है। कक्षा 1 से 5वीं तक के इस सरकारी स्कूल में कर्मचारी न होने की वजह से स्कूल के बच्चों से ही पूरी सफाई करवाई जाती है।
बात यहीं खत्म नहीं होती, अगर बच्चे सफाई के लिए मना कर दें तो उन्हें सख्त सजा भी दी जाती है। सफाई के लिए सभी बच्चों के दिन तय हैं। इसमें क्लास में झाड़ू लगाने से लेकर शौचालय तक की सफाई करना शामिल है। शौचालय की सफाई के दौरान बच्चों की ड्रेस भी गंदी हो जाती है और उन्हें स्कूल में उसी हालत में बैठना पड़ता है। कई बार बच्चे शौचालय में फिसलकर गिर भी जाते हैं, लेकिन उनकी लाचारी यह है कि वे स्कूल छोड़ भी नहीं सकते, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। यह बात बच्चों के परिजन को भी पता है, लेकिन वे भी मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें बच्चों को शिक्षित जो करना है।
डिंडोली बस स्टैंड के पास स्थित इस स्कूल का संचालन जिला पंचायत करती है। स्कूल में लगभग 700 बच्चे पढ़ते हैं। यहां हाल ही में स्कूल की नई बिल्डिंग बनी है, लेकिन स्कूल में सफाई कर्मचारी नहीं है।
शौचालय साफ किया तो बैठने दिया:
स्कूल में पढ़ने वाले एक छात्र मनीष (नाम परिवर्तित) ने बताया कि उसने शनिवार को शौचालय साफ करने से मना कर दिया था, तो उसे सुबह 11 बजे से 2.30 तक दोनों हाथ ऊंचे करके खड़े होने की सजा दी गई। आखिरकार उसके हाथों में तेज दर्द होने लगा तो उसने शौचालय साफ कर दिया और इसके बाद ही उसे कक्षा में बैठने दिया गया।
सफाई कर्मचारी नहीं है:
इस स्कूल में 700 विद्यार्थी पढ़ते हैं। स्कूल में एक भी सफाई कर्मचारी नहीं है। इसलिए पूरे स्कूल की सफाई बच्चों से ही करानी पड़ती है। इस मामले में हमने कई बार उच्च स्तर पर प्रशासन से बात भी की है, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।
- प्रवीण पटेल (शिक्षक)
सफाई कर्मचारी की पोस्ट ही नहीं:
बच्चे पढ़ाई के साथ साफ-सफाई रखना भी सीखें, इसी उद्देश्य से उनसे ऐसा करवाया जाता है। वैसे भी जिला पंचायत की शालाओं में सफाई कर्मचारी की कोई पोस्ट ही नहीं है। सफाई भी स्कूल के बड़े बच्चों से करवाई जाती है।
- बी.एम पटेल, जिला प्राथमिक शिक्षक अधिकारी
यह तो पाप है:
एक तरफ गंदा उठाने की परंपरा बंद करने की बात की जा रही है। एक तरफ सरकार द्वारा शिक्षण अभियान चलाए जा रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ मासूम बच्चों से ही शौचालय साफ करवाए जा रहे हैं। यह तो पाप है, जो किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- दर्शन नायक, विपक्ष नेता-जिला पंचायत
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