Wednesday, July 1, 2020

भुखमरी के कगार पर वाराणसी के बुनकर, गहने-घर गिरवी रखकर पेट पालने को मजबूर, हड़ताल की तैयारी


From: PVCHR Communication <cfr.pvchr@gmail.com>
Date: Wed, Jul 1, 2020 at 2:59 PM
Subject: भुखमरी के कगार पर वाराणसी के बुनकर, गहने-घर गिरवी रखकर पेट पालने को मजबूर, हड़ताल की तैयारी
To: <cmup@nic.in>
Cc: lenin <lenin@pvchr.asia>



To, 
The Chief Minister 
Government of Uttar Pradesh

Respected Sir, 

I want to bring in your attention towards the news published in Navbharat Times on 30 June, 2020 regarding भुखमरी के कगार पर वाराणसी के बुनकर, गहने-घर गिरवी रखकर पेट पालने को मजबूर, हड़ताल की तैयारी and also in Two circle.net on 28 June, 2020 regarding 

"We are on the verge of starvation," Saree weavers in Mau allege negligence by govt amid COVID-19 lockdown https://twocircles.net/2020jun28/437777.html


Therefore it is a kind request please take immediate appropriate action for providing relief to the weavers. 

Thanking You

Sincerely Yours


Lenin Raghuvanshi, Convenor, Peoples' Vigilance Committee on Human Rights 
Shruti Nagvanshi, Convenor, Voice of People 
Idrish Ansari, President, Bunkar Dastakar adhikar Manch
Shirin Shabana Khan, Member coordination committee , Savitri Bai Phule Mahila Panchayat
Kartikey Shuka, National Convenor, Berojgar Yuwa Adhikar Manch (BYAS)

भुखमरी के कगार पर वाराणसी के बुनकर, गहने-घर गिरवी रखकर पेट पालने को मजबूर, हड़ताल की तैयारी

वाराणसी (Varanasi News) के पावरलूम बुनकरों ने (Power loom Weavers) फिक्स रेट को खत्म करके मीटर रीडिंग के माध्यम से भुगतान के फैसले के विरोध में 1 जुलाई से 7 जुलाई तक सांकेतिक हड़ताल पर जाने का फैसला किया है। बुनकरों का कहना है कि अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी तो हड़ताल जारी रहेगी।

शेफाली श्रीवास्तव |Navbharat Times | Updated: 30 Jun 2020, 11:30:00 AM IST
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Video: सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं काशी के बुनकर, हाल-बेहाल
Video: सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं काशी के बुनकर, हाल-बेहाल
हाइलाइट्स
  • कभी बुनकर वाराणसी की शान थे लेकिन बीते कुछ महीनों से स्थिति बुरी हो गई है
  • कोरोना और लॉकडाउन ने इनकी कमर तोड़ दी। पावरलूम और हैंडलूम बंद पड़े हैं
  • कुछ ने कर्ज लेकर, गहने गिरवी रखकर छोटी दुकानें शुरू कर दी हैं ताकि गुजारा हो
  • सरकार की अनदेखी से नाराज बुनकर करेंगे 1 से 7 जुलाई तक सांकेतिक हड़ताल
वाराणसी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बुनकरों की हालत बदहाल है। कभी बुनकर यहां की शान थे लेकिन बीते कुछ महीनों से स्थिति बुरी हो गई है। फिर कोरोना और लॉकडाउन ने इनकी कमर तोड़ दी। पावरलूम और हैंडलूम बंद पड़े हैं। बुनकर भुखमरी की कगार है। बुनकर मजदूर दूसरों की मदद के सहारे जी रहे हैं।
लेटेस्ट कॉमेंट
सिर्फ बुनकर ही नही, देश के सभी आम लोगो का हाल बेहाल है, पर फिर भी सरकार की तरफ से मदद नही मिल रही है, क्यो? सरकार को इन सब बातों पर गंभीरता से सोचना चाहिये और आम जनता की मदद करने ...+
SHYAMLAL GAUD
कई लोगों ने कर्ज लेकर और गहने गिरवी रखकर छोटी-मोटी दुकान शुरू कर दी है ताकि कुछ गुजारा हो सके। हालत यह है कि एक दिन अगर खाने का जुगाड़ हो भी जाए तो दूसरे दिन क्या होगा, कैसे होगा, इसका कुछ अंदाजा नहीं। अपनी बदहाली और सरकार की अनदेखी से नाराज बुनकरों ने 1 जुलाई से 7 जुलाई तक सांकेतिक हड़ताल पर जाने का फैसला किया है।

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बुनकरों ने की बिजली बिल में सब्सिडी की मांग

वाराणसी में पावरलूम बुनकरों की इस वक्त सबसे बड़ी मांग बिजली बिल में सब्सिडी को लेकर है जिसमें इस साल जनवरी से बदलाव कर दिए गए हैं। दरअसल पिछले साल दिसंबर योगी आदित्यनाथ कैबिनेट ने तय किया था कि अब पावरलूम बुनकरों को फ्लैट रेट की बजाय हर महीने मीटर रीडिंग के हिसाब से बिल तैयार होगा और एक निश्चित संख्या तक बिल में छूट दी जाएगी।

'इतना ज्यादा बिल देंगे तो मजदूरों को क्या देंगे'
वाराणसी के शक्कर तालाब में रहने वाले शहंशाह कमाल ने बताया, 'जो बिजली का बिल हम अब तक महीने में 150 रुपये देते थे वो अब 2500 या 3000 रुपये तक आ जाएगा। यह तो मेरी जेब से जाना शुरू हो जाएगा। ऐसे में ना तो हम किसी को काम दे पाएंगे, न कोई कारीगर काम कर पाएगा और न वह अपना पेट पाल पाएगा।'

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कमाल ने आगे बताया, 'लॉकडाउन खुलने के बाद धीरे-धीरे काम शुरू हुआ, तो लोग बकाया बिल जमा करने पहुंचे। लेकिन वहां कह दिया गया कि जनवरी से अब मीटर रीडिंग होगी और 10 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली का बिल लिया जाएगा। लॉकडाउन में वैसे ही बुनकरों के खाने के लाले पड़े थे और इससे वह और कर्ज में चला गया है।'

मुलायम सरकार ने दिया था फ्लैट रेट का तोहफा
बता दें कि 2006 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की एसपी सरकार ने प्रदेश के बुनकरों को सब्सिडी के साथ फ्लैट बिजली रेट का गिफ्ट दिया था। योजना के तहत 0.5 हॉर्स पावर वाले लूम के लिए बुनकर से 65 रुपये चार्ज किया जाता थे वहीं एक हॉर्स पावर लूम के लिए बुनकर से 130 रुपये हर महीने लिए जाते थे। 10 साल तक बुनकरों को सब्सिडी का लाभ मिला लेकिन 2015-16 में योजना हथकरघा व वस्त्रोद्योग विभाग के हवाले हो गई।

हथकरघा विभाग पर करोड़ों का बकाया
बुनकरों को बिजली की सब्सिडी देने के लिए विभाग को सालाना 150 करोड़ रुपये का बजट आवंटित है लेकिन बिजली रेट बढ़ने से सब्सिडी की धनराशि बढ़ते-बढ़ते सालाना 950 करोड़ रुपये पहुंच गई थी। इसकी वजह से 31 मार्च 2018 तक हथकरघा विभाग पर ऊर्जा विभाग का 3682 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया हो गया था। वहीं कई अनियमितताओं की खबर भी आई थी।

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योगी कैबिनेट ने लिया फैसला
योगी सरकार ने पावरलूम बुनकरों को फ्लैट रेट पर विद्युत आपूर्ति के चलते सब्सिडी के बढ़ते बोझ से निजात पाने और गलत इस्तेमाल रोकने के लिए योगी सरकार ने योजना में बदलाव करने का फैसला किया। इसके तहत अब पावरलूम बुनकरों को फ्लैट रेट की बजाय हर महीने बिजली यूनिट की एक निश्चित संख्या तक बिल में छूट दी जाएगी। छोटे पावरलूम (0.5 हॉर्स पावर तक) को 120 यूनिट और बड़े पावरलूम (एक हॉर्स पावर तक) को 240 यूनिट हर महीने की सीमा तक 3.5 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली रेट में छूट दी जाएगी।

पिछले दिनों वाराणसी के बुनकरों का एक प्रतिनिधित्व लखनऊ में सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी मिला था। बुनकरों का कहना है कि उन्हें मदद का आश्वासन मिला लेकिन बात फिर वहीं अटक गई।

'हर किसी से बात की लेकिन बेनतीजा रही'
बुनकर उद्योग फाउंडेशन के महासचिव जुबैर आदिल ने बताया, 'पूरे यूपी के बुनकरों ने वर्चुअल माध्यम से हड़ताल का फैसला किया है। अगर सरकार ने मान ली तो हमें इसे वापस ले लेंगे नहीं तो जारी रखेंगे।' उन्होंने आगे कहा, 'हम इस संबंध में सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर कपड़ा मंत्री, ऊर्जा मंत्री और प्रमुख सचिव से बात कर चुके हैं लेकिन हर बार बातचीत बेनतीजा रही।'

'2006 वाला फ्लैट रेट कर दिया जाए'
जुबैर का कहना है, 'लॉकडाउन में तो सरकार ने कोई मदद नहीं की। पावरलूम में स्किल्ड लेबर हैं। इससे काफी विदेशी मुद्रा का अर्जन होता है। टूरिज्म को बढ़ावा मिलता है। 12 हजार करोड़ रुपया जीएसटी सरकार को टेक्सटाइल से मिल रहा है लेकिन सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है।' जुबैर ने कहा, 'हमारी मांग है कि पावरलूम बुनकरों के लिए बिजली का फिक्स्ड रेट तय कर दिया जाए जैसे 2006 में था।'

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सब्जी बेचकर गुजारा कर रहे हैं स्किल्ड बुनकर
कोरोना और लॉकडाउन ने बुनकरों के घाव और गहरे कर दिए हैं। आज की तारीख में स्किल्ड बुनकर घर चलाने के लिए सब्जियां बेच रहे हैं, ऑटो चला रहे हैं, छोटी-मोटी दुकानें चला रहे हैं। डोसीपुरा के रहने वाले शाहबाज आलम ने बताया, 'हम हर रोज 200-300 रुपये कमाने वाले लड़के हैं जिसमें पूरा परिवार चलाना होता है। हमारी कोई सेविंग नहीं होती है। बस जो पैसा आज आया उसी से आने वाला कल भी चलाना होता है।'

शहबाज ने आगे बताया, 'पिछले तीन महीने से कोई एक वक्त का खा रहा है, कोई किसी की मदद कर दे रहा है। लेकिन अब हालत इतनी खराब हो गई है कि वे भी दूसरे की मदद करने के लिए तैयार नहीं है। मुझे कर्ज लेकर अपनी दुकान खोलनी पड़ी।'

'घर चलाने के लिए गहने गिरवी रखने पड़ रहे'
कमाल बताते हैं, 'कपड़े का काम रीढ़ की हड्डी माना जाता है। देश-विदेश में नाम रौशन होता है लेकिन हमारे बारे में कोई कुछ नहीं सोचता है।' वह बताते हैं कि शक्कर तालाब में 15 फीसदी बुनकर काम छोड़कर सब्जी बेच रहे हैं तो कोई गहना गिरवी रखकर दुकान चला रहा है। कुछ लोग दो-तीन दिन तक घूमते रहते हैं कि कहीं कोई काम मिल जाए गड्ढा खोदने का या कुछ भी। हमारे इलाके के कुछ लड़के मुगलसराय तक गए कि कहीं काम मिल जाए।

'बुनकरों पर सरकार का ध्यान नहीं'
शहबाज के साथी कासिम भी दुविधा में हैं। उन्होंने बताया, 'यह हमारा पुश्तैनी काम है लेकिन कभी सोचा नहीं था कि ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा। आज हमारा काम आगे नहीं बढ़ रहा है। साड़ियां वैसे की वैसे ही पड़ी हैं। कोई खरीदार नहीं हैं। पैसे भी नहीं मिल रहे हैं। छोटी-मोटी दुकान चलाकर गुजारा कर रहे हैं। आगे क्या होगा कुछ पता नहीं।' जुबैर ने कहा, 'सरकार 1.25 करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात कर रही है लेकिन जो मशीनें, कल कारखाने, स्किल्ड लेबर पहले से हैं, उस पर ध्यान न देकर नई चीजों पर ध्यान दिया जा रहा है ये एक चिंता का विषय है।'

'लूम बेचकर भरना पड़ेगा बिल'
कमाल बताते हैं, 'सबसे ज्यादा टेंशन बिजली के बिल को है लोगों को मशीन बेचकर बिजली का बिल भरने की नौबत आ गई है। वैसे एक मशीन सवा लाख रुपये की पड़ती है लेकिन अब लोग 40 से 50 हजार में बेच रहे हैं कि ताकि बिल जमा हो जाए।'

बुनकरों का कहना है कि पूरे प्रदेश में दो लाख 56 हजार से अधिक पावर लूम मशीन हैं। सरकार ने फैसला नहीं बदला तो इनका चल पाना संभव नहीं होगा।
वाराणसी बुनकर (फाइल फोटो)

वाराणसी बुनकर (फाइल फोटो)

"We are on the verge of starvation," Saree weavers in Mau allege negligence by govt amid COVID-19 lockdown

June 28, 2020
Saree Loom

Musheera Ashraf, TwoCircles.net 

Mau: Amid the ongoing COVID-19 pandemic and the nationwide lockdown enforced in March, Saree weavers in Mau city of Uttar Pradesh complain of being at the verge of starvation and unable to make ends meet.

The city of Mau is 316 km from the capital city Lucknow. The city is well-known for manufacturing Banarasi Sarees so much so that India's first prime minister, Jawahar Lal Nehru, had called it as the 'Manchester of Handloom' in 1957. The analogy drew inspiration from the fact that just like Manchester City in England was known as Cottonopolis (for its cotton mills) in the 19th century, Mau was known for its silk Sarees back then.

"We are short of money and facing great difficulty," says Firoza Khatoon, a widow who lost her husband 20 years ago.

Firoza works as a weaver of Banarasi Sarees. She is a mother of four kids. Amid the pandemic, she finds it difficult to feed her children as "all the money that I had is now used and it's difficult to survive now".


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For Firoza Khatoon it makes no difference if the shops for daily needs are open or not because she has no money to buy essentials. Whatever savings she had was spent already. "Weaving is a must for people to survive here in Mau. If this business is shut, people will starve," she says. "I am living my life in difficulty," she adds.

In the past months, Firoza says that she didn't receive any help from the government. "My struggle is mine alone."

Closed shops in Sadar Area, Mau

After the outbreak of the COVID-19 pandemic, the weavers in Mau have undergone a significant downfall in their business, says Mujtaba, a resident of Mau.

Sadar Chowk, a Muslim majority area is sealed and no one is allowed to enter. "Officials have imposed a strict lockdown in the area where we have our business but the situation in living areas is worse," says Sadat.

Ali who has a shop in the Sadar area said those working as weavers and artisans have no choice. "Some of them are selling cigarettes and tea outside their homes, which itself is a matter of concern," he said.

According to Sadat, the road adjacent to Sadar Bazar has a mixed population in terms of religion. "They are opening their shops and people are working normally in such places," he said.

A manufacturer of Sarees Sajid complains that, "the situation is getting worse as the administration has instructed to bar even areas where there are no coronavirus cases."

"People are starving because there was a rumour that the deaths are increasing and in 2 hours 11 dead bodies have been buried, which is practically impossible," Sajid said, adding, "The administration should have done an authentic investigation. Lockdown should be implemented keeping the livelihood of people in mind."

A single Saree takes around 5 to 6 hours to make and the labour cost which goes in the making of one Saree is around 250 to 300 INR. The Sarees are then manufactured and exported to different cities.

"The loss is immeasurable. Two weeks ago, the working of looms was resuming gradually. It was hope for the poor labourers but now this strict lockdown again has hit people badly," Sajid explains.

According to the weaver's community, the government is deliberately doing this. "The people who were protesting against CAA-NRC were made targets and are charged with gangster violence charges," says a businessman from Mau, who insisted on remaining anonymous.

"The government is working with the double agenda to hit Muslims anyhow," he adds.

Children selling Roohafza, to compensate family earning

"If we will sell the Sarees, then only we will get the money. The labour force is the hardest hit. People are trying to help each other but it cannot go on for long," he said.

He said the government is distributing relief in Hindu populated areas, "but we haven't seen any help in Muslim areas."

"People are at the verge of starvation," says Sajid, whose Saree business has been impacted due to the restrictions and lockdown.

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