Date: Wed, May 27, 2020 at 11:59 AM
Subject: अति महत्वपूर्ण : बिहार के 7 प्रवासियों की भूख-प्यास से ट्रेन में मौत,2 दिन के बदले 9 दिन में पहुंचा रही हैं श्रमिक स्पेशल
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माननीय प्रधानमंत्री महोदय,
भारत सरकार,
नई दिल्ली |
महोदय,
आपका ध्यान ऑनलाइन न्यूज पोर्टल "www.janjwar.com" के इस खबर "बिहार के 7 प्रवासियों की भूख-प्यास से ट्रेन में मौत, 2 दिन के बदले 9 दिन में पहुंचा रही हैं श्रमिक स्पेशल" की और आकृष्ट करना चाहता हूँ | कोरोना से हुए लॉकडाउन में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला प्रवासी मजदूर है। जगह-जगह सड़क दुर्घटनाओं, पटरियों, रास्ते में पैदल चलते हुए लगभग 150 लोग दम तोड़ चुके हैं। इसके बाद अब ये प्रवासी मजदूर ट्रेनों में भी दम तोड़ने लगे हैं। इनमें ज्यादातर यूपी-बिहार के मजदूर हैं।
गौरतलब है कि प्रवासियों को उनके जिलों तक छोड़ने के लिए रेलवे की श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में कोई व्यवस्था नहीं है। ट्रेनें रास्ता भटककर कहीं की कहीं पहुंच रही हैं। 2 दिन में पहुंचने वाली ट्रेनें 9 दिन में पहुंच रही हैं तो लोग अब भूख-प्यास से ट्रेनों में ही दम तोड़ने लगे हैं। ट्रेनों में भूख-प्यास से मरने वालों में बच्चे, नौजवान भी और बुजुर्ग सभी शामिल हैं। कई गर्भवती महिलाओं के बच्चे दुनिया देखने से पहले ही विदा हो गये हैं।
अतः आपसे अनुरोध है कि कृपया इस गंभीर मामले को संज्ञान में लेते हुए इन सभी घटनाओ कि निष्पक्ष जांच कराते हुए दोषियों के खिलाफ कार्यवाही का आदेश देते हुए मृतकों के परिजनों को अविलम्ब मुआवजा दिलाने की कृपा करे |
न्यूज का लिंक -
भवदीय
डा0 लेनिन रघुवंशी
Lenin Raghuvanshi
Founder and CEO
People's Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR)
An initiative of Jan Mitra Nyas ISO 9001:2008
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बिहार के 7 प्रवासियों की भूख-प्यास से ट्रेन में मौत, 2 दिन के बदले 9 दिन में पहुंचा रही हैं श्रमिक स्पेशल
ट्रेन में हुई मासूम की मौत : पिता का आरोप भूख-प्यास से मर गया मेरा बच्चा (photo : dainik bhaskar)
2 दिन में पहुंचने वाली ट्रेनें 9 दिन में पहुंचा रही हैं और प्रवासी भूख-प्यास से ट्रेनों में ही तोड़ रहे हैं दम, ट्रेनों में भूख-प्यास से मरने वालों में बच्चे, नौजवान भी और बुजुर्ग सभी शामिल हैं, नवजात बच्चों की भी ट्रेन में हुई मौत…
पटना, जनज्वार। कोरोना से हुए लॉकडाउन में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला प्रवासी मजदूर है। जगह-जगह सड़क दुर्घटनाओं, पटरियों, रास्ते में पैदल चलते हुए लगभग 150 लोग दम तोड़ चुके हैं। इसके बाद अब ये प्रवासी मजदूर ट्रेनों में भी दम तोड़ने लगे हैं। इनमें ज्यादातर यूपी-बिहार के मजदूर हैं।
गौरतलब है कि प्रवासियों को उनके जिलों तक छोड़ने के लिए रेलवे की श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में कोई व्यवस्था नहीं है। ट्रेनें रास्ता भटककर कहीं की कहीं पहुंच रही हैं। 2 दिन में पहुंचने वाली ट्रेनें 9 दिन में पहुंच रही हैं तो लोग अब भूख-प्यास से ट्रेनों में ही दम तोड़ने लगे हैं। ट्रेनों में भूख-प्यास से मरने वालों में बच्चे, नौजवान भी और बुजुर्ग सभी शामिल हैं। कई गर्भवती महिलाओं के बच्चे दुनिया देखने से पहले ही विदा हो गये हैं।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के मुताबिक इसमें एक घटना महाराष्ट्र से श्रमिक स्टेशन ट्रेन से लौट रहे मजदूर की है। आरा में जब लोगों ने उसे उठाना चाहा तो देखा उसकी मौत हो गयी है। मृतक की पहचान नबी हसन के पुत्र निसार खान उम्र लगभग 44 वर्ष के रूप में की गई। निसार खान गया का रहने वाला था। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की अव्यवस्था का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुजरात के सूरत से 16 मई को सीवान के लिए निकलीं दो ट्रेनें उड़ीसा के राउरकेला और बेंगलुरु पहुंच गईं।
वाराणसी रेल मंडल ने जब इस मामले में पता किया तो पता चला कि बिहार पहुंचने वाली ट्रेनें राउरकेला और बेंगलुरू पहुंच चुकी हैं। जिस ट्रेन को 18 मई को सिवान पहुंचना था, वह 9 दिन बाद सोमवार 25 मई को पहुंची। ट्रेन को गोरखपुर के रास्ते सीवान आना था, लेकिन छपरा होकर सोमवार के तड़के 2.22 बजे वह सीवान पहुंची। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का कहीं से कहीं पहुंचने का सिलसिला मीडिया में मामला उछलने के बाद भी थमा नहीं है। जयपुर-पटना-भागलपुर 04875 श्रमिक स्पेशल ट्रेन रविवार की रात पटना की बजाय गया जंक्शन पहुंच गई।
पश्चिम चंपारण जिले के चनपटिया थाना के तुलाराम घाट निवासी मो. पिंटू शनिवार 23 मई को दिल्ली से पटना के लिए ट्रेन में बैठे थे। सोमवार 25 मई की सुबह दानापुर से मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे। मुजफ्फरपुर में बेतिया की ट्रेन में चढ़ने के दौरान उनके मासूम बेटे इरशाद की मौत हो गई। पिंटू कहते हैं, उमस भरी गर्मी और भूख के कारण इरशाद की मौत हुई है। अगर खाना नसीन हो गया होता तो हम अपने बच्चे को नहीं खोते, वो हमारे साथ होता।
वहीं महाराष्ट्र के बांद्रा टर्मिनल से 21 मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से घर लौट रहे कटिहार के 55 वर्षीय मोहम्मद अनवर की सोमवार 25 मई की शाम बरौनी जंक्शन पर मौत हो गई। मीडिया में आई जानकारी के मुताबिक अनवर ने बरौनी में 10 रुपये का सत्तू खरीद कर खाया और कर्मनाशा से कटिहार जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन पर सवार होने से पहले वह पानी लेने उतरा था, इसी बीच उसकी मौत हो गई।
मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि कटिहार के रहने वाले मोहम्मद वजीर अहमदाबाद में मजदूरी करते थे। वे श्रमिक स्पेशल ट्रेन से अपनी पत्नी बच्चों और साली अरवीना खातून के साथ घर आ रहे थे। रास्ते में अरवीना खातून की तबीयत ट्रेन में ही खराब हो गई और लगभग 12 बजे दिन में ट्रेन में ही उनकी मौत हो गई। श्रमिक ट्रेन जब दोपहर बाद 3:30 बजे मुजफ्फरपुर पहुंची तो उनके शव को उतारा गया।
मोहम्मद वजीर ने बताया कि उनकी साली की तबीयत पिछले 3 दिनों से खराब चल रही थी। प्रशासन द्वारा एंबुलेंस के माध्यम से उन्हें कटिहार भेज दिया गया है। इसी तरह पश्चिम चंपारण के रहने वाले मोहम्मद पिंटू अहमदाबाद से श्रमिक ट्रेन से दानापुर पहुंचे और दानापुर से 25 मई को सीतामढ़ी वाली विशेष ट्रेन से सीतामढ़ी जा रहे थे। यात्रा के क्रम में उनके बच्चे की तबीयत खराब हो गई और मुजफ्फरपुर में उनके बच्चे मोहम्मद इरशाद अहमद की मौत हो गई।
मौतों का सिलसिला मासूम इरशाद और मोहम्मद अनवर पर आकर ही नहीं थमा है। सूरत से श्रमिक स्पेशल से सोमवार 25 मई की दोपहर 1 बजे सासाराम पहुंची महिला ने अपने पति से कहा कि उसे भूख लगी है। स्टेशन पर ही पति के सामने उसने नाश्ता किया और उसके बाद वह कंपकंपाने लगी। उसके बाद पति की गोद में ही उसने दम तोड़ दिया। मृतक महिला ओबरा प्रखंड के गौरी गांव की रहने वाली थी। महिला की मौत होते ही सासाराम स्टेशन पर हड़बड़ी मच गयी, लोग इधर-उधर भागने लगे। पत्नी की लाश लिये पति असहाय हालत में था।
इसके अलावा महाराष्ट्र से आ रहे एक श्रमिक की ट्रेन में हालत खराब होने के बाद मौत हो गई। मरने वाला शख्स मोतिहारी जिले के कुंडवा-चैनपुर का बताया जा रहा है। महाराष्ट्र से बिहार लौट रहे इस शख्स की तबीयत खराब होने के बाद उसे ट्रेन से उतारकर जहानाबाद सदर अस्पताल ले जाया गया, मगर तब तक उसकी सांसें उखड़ चुकी थीं।
राजकोट-भागलपुर श्रमिक स्पेशल ट्रेन से गया में सोमवार 25 मई को 8 माह का एक बच्चा भी मरने वालों में शामिल है। परिजनों ने बच्चे के बजाय उसकी लाश बाहर निकाली। यह परिवार मुम्बई से सीतामढ़ी लौट रहा था। जानकारी के मुताबिक तबीयत खराब होने के बाद आगरा में बच्चे का इलाज हुआ, मगर उसके बाद कानपुर के पास मौत हो गई। कानपुर से गया तक मां-बाप ने अपने कलेजे के टुकड़े की लाश के साथ सफर किया। बच्चे के पिता देवेश पंडित सीतामढ़ी के खजूरी सैदपुर थाना क्षेत्र के सोनपुर गांव का रहने वाले हैं।
अहमदाबाद से मुजफ्फरपुर पहुंची श्रमिक स्पेशल ट्रेन में कटिहार की रहने वाली 23 साल की अलविना खातून भी नहीं उतर पायीं, बाहर निकली तो उनकी लाश। अलविना अपने जीजा इस्लाम खान के साथ अहमदाबाद से घर लौट रही थीं। विक्षिप्त अलविना के जीजा इस्लाम खान रो-रोकर बताते हैं अलविना का इलाज अहमदाबाद में चल रहा था, मगर लॉकडाउन के बाद जब हम लोगों के लिए हालात बहुत बदतर हो गये तो हमने लौटने का फैसला किया, मगर मुझे नहीं पता था कि मैं अपने साथ अलविना नहीं उसकी लाश के साथ लौटूंगा।
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